"कल आज कल"... दो पन्ने ज़िन्दगी के
जब किसी व्यक्ति विशेष, समूह या वर्ग का व्यक्तित्व उसके अन्दर समाहित गुणवत्ता, विचारों और प्रवत्ति से प्रदर्शित हो अथवा विचारों का सम्मिलित रूप जो की आपके व्यक्तित्व में दिखाई दे उसे सिद्धांत कहते हैं| विचारों के प्रवाह के सम्मिलन से विचारधारा की उत्पत्ति होती है अगर सरल शब्दों में कहें तो सिद्धांत का मूल हमारे आस पास के वातावरण, परिवर्तनशील समाज, विज्ञान, तकनीकी और लोगों के व्यवहार आदि से बनता है| समाजिक परिवेश का साफ असर व्यक्ति वशेष पर देखा जा सकता है, और इसीलिए सैद्धांतिक विशेषज्ञों ने सिद्धांत को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया है
a) Traditionalb) Modernism
c) Post-Modernism
(क) परंपरागत विचारधारा
(ख) आधुनिक विचारधारा
(ग) पर-आधुनिक विचारधारा
विचारधारा के स्वरुप को समझने के लिए पहले तीनो प्रकार के सिद्धांतों की विशेषताओं और उनके लक्षण को समझना आवश्यक है | परंपरागत सिद्धांत और पर-आधुनिक सिद्धांत के लक्षण में कंही-कंही समानता देखने को मिलती है, वंही दूसरी ओर आधुनिक सिद्धांत दोनों से काफी भिन्न है, परंपरागत विचारधारा ईश्वरीय शक्तियों और सभ्यता पर विश्वास रखती है वंही आधुनिक विचारधारा ईश्वरीय शक्तिओं को नकारती है और पर-आधुनिक की इस धारणा को लेकर उदासीन या निष्पक्ष प्रतिक्रिया है।
अधिकांशतया देखा गया है की किसी भी व्यक्ति विशेष या वर्ग में पूर्ण रूप से एक ही विचारधारा का होना आवश्यक नहीं होता है बल्कि विचारधाराओं के मिश्रण को लोगों के व्यवहार में देखा जा सकता है| लोग अपने सिद्धांत खुद बनाते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि उनपर अमल करने की लेकिन अकसर देखा गया है की सामाजिक वातावरण, पारिवारिक रिवाज़, संस्कृति और ईश्वरीय देन, परंपरागत विचारधारा के कुछ खास लक्षण हैं जबकि परिवर्तनशील समाज में अधिकतर विचारधाराओं में बदलाव देखने को मिलता है, जब हम एक स्थिर समाज से बदलते हुए समाज की और बढ़ते हैं तो उस पारगमन की स्थिति में विचारधाराओं में काफी उत्तेजित बदलाव देखने को मिलते है।
किसी व्यक्ति के सिद्धांत को जानने के लिए उसके व्यवहार और आचरण के विषय में मालूम होना अतिआवश्यक है, इन तीनो विचारधारा के गुणों और लक्षण को ध्यान में रखते हुए मैं स्वयं के सिद्धांत का आकलन करना चाहूंगी और बताना चाहूँगी की किस तरह किसी व्यक्ति में सिद्धांतों का आगमन होता है, किन परिस्थितयों में अपने सिद्धांतों को बदलना पड़ता है या बिना किसी जानकारी से आपके विचारों में परिवर्तन होने लगता है और आपको बाद में पता चलता है की मेरी विचाधारा में परिवर्तन हो गया है और इन बदलाव का मुख्य कारण परिवर्तन है, परिवर्तन सामाजिक व्यवस्था में,संस्कृति में, विज्ञान में, तकनीकी में, अर्थव्यवस्था में, जीवन शैली में मूलतयः आपके वातावरणीय परिवर्तन का होना विचारों में परिवर्तन का मुख्य कारण है।
अपनी विचाधारा का आकलन मैं अपने जीवन में हुए कुछ घटनाओं और हमारे आस पास के वातावरणीय प्रभाव का विवरण देते हुए करुँगी जिससे सिद्धांतों के क्रियाकलापों को समझना आसान होगा।
उससे पहले मैं बता दूं की मेरे अन्दर सिद्धांतों का मिश्रण है, जिसमे पर-आधुनिक विचारधारा का अनुपात सबसे ज्यादा है और फिर मेरी सोच परंपरागत विचारों वाली है और मैं बहुत कम आधुनिक विचारों वाली इंसान हूँ।
मैं एक छोटे शहर उन्नाव से हूँ जो की उत्तर प्रदेश का एक जिला है और जंहा पर अभी भी पुराने रीति रिवाजो और जीर्ण सामाजिक ढांचे पर लोग अपना जीवन यापन कर रहें हैं, अपनी संस्कृति और समाज द्वारा बनाये गए नियमों को बनाये रखने और उन पर अमल करने की जद्दोजहत में लगे हुए हैं, इसका एक बहुत सीधा और साधारण उदाहरण ये है की अभी भी वंहा पर जाति वाद इतना ज्यादा है की नीची जाति समझे जाने वाले लोगों को वंहा पर अभी अछूतों की तरह ही व्यवहार किया जाता है, परंपरागत विचारधारा का एक महत्वपूर्ण लक्षण ईश्वरीय देंन माना जाता है, दलित और अनुसूचित जन जाती वाले लोगो को ये अहसास दिलाया जाता है की इस कुल में जन्म लेने से ही वो (सवर्ण) हमारे साथ कुछ भी कर सकते हैं और ये ईश्वर की मर्जी से हो रहा है, मैं एक दलित समाज से हूँ और इसकी परंपरा से काफी हद तक वाकिफ हूँ, जंहा हमे हमारे घर में हिदायत दी जाती है की हम अछूत हैं इसलिए हम किसी भी ऊँचे कुल के लोगो के साथ खाना नहीं खा सकते।
बचपन में मुझे समझ नहीं आता था की क्यों हमारे साथ इस तरह का दुर्व्यवहार किया जाता है, जब भी गर्मियों की छूट्टी में मैं अपने गाँव जाती तो वंहा और ये सब देखने को मिलता था जैसे अगर कोई सवर्ण कुएं से पानी ले रहा हो तो हमें कुए पर कदम रखने की भी मनाही थी तब मैं अनायास ही अपनी दीदी से पूछती की हम नींचे क्यों खड़े हैं और अभी जब वो नहा रहे हैं तब हम पानी क्यों नहीं ले सकते, तब वो मुझे बताती की यही समाज का नियम की जब कोई ऊँची कुल का व्यक्ति कहीं पर भी हो हमे उसके पास नहीं जाना चाहिए क्यूंकि हमारे छूने से वो अपवित्र हो जायेंगे उसके बाद ऐसी बहुत छोटी छोटी घटनाएं जो हमारे शहर में भी होती रही जैसे हमारे पडोसी मिश्रा अंकल कभी हमारे घर पर चाय नहीं पीते थे और अपने घर के किसी समारोह में हमे नहीं बुलाते थे, तभी मैंने बेबी काम्बले की एक उपन्यास पढ़ी, जिसका नाम हमारा जीवन था तब मैं कक्षा 6 में थी| उस किताब में दलितों पर समाज द्वारा किये गए अत्याचार के बारे में विस्तार से दिया गया था और कसी तरह से समाज से लड़ कर बाबा भीम राव अंबेडकर जी ने हमे अभी जो स्थान समाज में दिलाया उसका विवरण था और तभी से मेरी खुद की पहली विचारधारा बनी और वो ये थी की मैं कभी इस समाज का हिस्सा नहीं बनूँगी और मैं व्यक्तित्व पर विश्वास करने लगी| मैंने सीधा पराधुनिक विचारधारा को अपनाया जंहा पर व्यक्ति विशेष पर जोर दिया जाता है।
लेकिन इसका ये मतलब नहीं की मैं नास्तिक हूँ या मुझे समाज में रहने से परहेज़ हैं बल्कि मुझे परम शक्ति पर पूरा विशवास है और मेरा मानना है की जो होता है अच्छे के लिए होता है और ईश्वर की मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता हम तो इंसान है, तो यंहा पर विचारों में मिश्रण है जो की परंपरागत और पराधुनिक दोनों है हमारे घर के वातावरण कुछ ऐसा है जंहा ईश्वर को माना तो जाता है पर उनके होने पर भी हमारे साथ हुए जुल्म को नज़रंदाज़ नहीं किया जाता है, कहते हैं अगर किसी समाज के उसूलो और रिवाजों को जानना हो तो उनकी शादी के समारोह में ज़रूर जाना चाहिए अगर आप हमारे घर की शादी में आये तो आपको पता चल जाएगा की हमारी शादी किस तरह से समाज द्वारा बनाये गए नियमों को तोड़ कर खुद बनाये गए नियमों पर चलती है, हमारे यंहा पर भी शादी हिन्दू रिवाजों के अनुसार ही होती है, पर हमारी शादी में पंडितों को बुलाने की सख्त मनाही है जबकि मैं इसका विरोध करती हूँ और मेरा मानना है, की शादी अगर हिन्दू रीति रिवाजों से हो रही है तो मंत्रोच्चारण के लिये पंडित का होना बहुत आवश्यक है, मैं अपनी संस्कृति, सभ्यता और रिवाजों के काफी करीब हूँ और मानती हूँ की किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने के लिए इन का होना बहुत ज़रूरी है|
अगर आर्थिक नीतियों की बात करें तो कंही हद तक मैं सिम्बल नीति पर विश्वास रखती हूँ क्यूंकि यंहा पर फिर से मुझे स्वयं अनुग्रह की अनुभूति होती है प्रतीक व्यवस्था कंही न कंही सामाजिक बंधन को तोड़ती है और यही कारण है कि लोग आज कल पराधुनिक विचारधारा की ओर बढ़ रहे हैं वो विश्वनाथ कॉफी सेण्टर जाने की बजाय कैफे काफी डे जाना ज्यादा पसंद करते हैं प्रतीक सिस्टम का एक बहुत अच्छा उदाहरण है आइडिया का एक विज्ञापन जंहा पर नाम को हटा कर सब कुछ नम्बर कर देने की बात की गयी है "लोग अब नाम से नहीं बल्कि नम्बर से जाने जायेंगे " यंहा पर अपनी सामूहिक पहचान को खोकर एक ऐसी पहचान बनाने का अवसर मिलता है जिसमे लोग आपको किसी भी जाति, धर्म से नहीं बल्कि आप को एक इस पूरी समाज (सिम्बल समाज) का हिस्सा माने जंहा आपको खुद में रहने का मौका मिलता है और अपने आप में खुश रहने की कोशिश करते हैं, और अपने व्यक्तित्व को एक पहचान देने में मदद मिलती है।अगर यंहा पर कार्य करने और जीविका चलाने के तरीके पर ध्यान दे तो समाजिक व्यवस्था के अनुसार दलितों को बाकी वर्गों की सेवा व् चर्म का कार्य सौपा गया जो की बाद में उनका पेशा बन गया लेकिन उस समाजिक व्यवस्था को तोड़कर मशीन द्वारा किये गए काम पर जोर दिया लेकिन मेरे मानना है की कार्य व्यवस्था को बाँध कर रखने की बजाये उसे सर्व व्यापी होना चाहिए और इसीलिए सिम्बल सिस्टम जो की सार्वभौमिक है मैं उस पर अधिक विश्वास करती हूँ क्यूकी वो आपके व्यक्तित्व को बाँध कर नहीं रखती आप किसी जाती से समबन्धित नहीं होते और आप लेबर भी नहीं होते।
और वंही अगर मेरी प्रकृति से रिश्ते की बात करे तो मैं प्रकृति और उसके नियम पर बहुत भरोसा करती हूँ, मेरा मानना है की प्रकृति हमारे लिए बहुत ज़रूरी है और हम उस पर कंही हद तक आधारित हैं क्यूंकि प्रकृति ही हमे जीने का ढंग सिखाती है हमे इसकी रक्षा करनी चाहिए और और जंहा तक हो सके इस बात को स्वीकार लेना चाहिए की बिना प्रकृति के हमारा जीवन असंभव है क्यूंकि ये हमे पेड़ पौधे, आक्सीजन, पानी और जीने के महत्वपूर्ण अंश प्रदान करती है यंहा पर मैं पराधुनिक विचारधारा के एक दम विपरीत हूँ जंहा पर लोग प्रकृति से अपने आप को एक दम अलग मानते हैं और उनके लिए प्रकृति की कोई महत्वत्ता नहीं है।
अगर जीवन में आने वाले मौको की बात करे तो मैं भविष्य के बारे में ज्यादा नहीं सोचती मुझे वर्तमान में जीना पसंद है क्यूंकि भविष्य के बारे में सोच कर मैं अपना आज बर्बाद नहीं कर सकती, लेकिन कुछ साल पहले मैं बिलकुल ऐसी नहीं थी मैं भविष्य को लेकर काफी योजनाये बनती थी की ये करुँगी वो करुँगी लेकिन जब रिश्तो की बात करे तो मुझे रिश्तो को खोने से दर लगता है और यही कारण है की मुझे भविष्य के बारे में सोचना पसंद नहीं है और यंहा पर मैं एक काफी व्यक्तिगत बात रखना चाहती हूँ की मैं एक ऐसे इंसान के साथ अपना जीवन गुजारना चाहती थी, जो की राजपूत है लेकिन फिर समाज और उनके नियमों के कारण मैं उससे शादी नहीं कर सकती इसलिए नहीं की मैं समाज को मानती हूँ बल्कि इसलिए क्यूकी वो इंसान समाज को बहुत मानता है, लेकिन मैं उस से नाराज़ नहीं हूँ क्यूंकि अगर मेरी अपनी व्यक्तिगत सोच है तो उसके भी अपने सिद्धांत हो सकते हैं हम एक दुसरे को पसंद करते हैं तो मैंने अपनी विचारधारा को बदल लिया और मान लिया और भविष्य कि चिंता को छोड़ कर सिर्फ अपने वर्तमान को ख़ूबसूरत और अच्छा बनाने कि कोशिश में हूँ और यही कारण है कि मैंने भविष्य में होने वाले निश्कर्ष पर ध्यान नहीं देती मुझे लगता है कि कोई भी चीज़ निश्चित नहीं कभी भी कुछ भी हो सकता तो यहाँ मैं Probability factor पर विश्वास करती हूँ और बिना भविष्य के विषय में सोच कर अपने वर्तमान को जीने कि कोशिश कर रही हूँ, और अगर विज्ञान कि बात तो विज्ञान कि छात्रा होने के कारण मुझे श्रोडिंजर वेव थ्योरी जो ये कहती है कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो पहले से निश्चित हो, अगर खगोल शाश्त्र को पड़े तो पता चलता है कि धीरे धीरे धरती नष्ट हो जायेगी, और ये दो तरीके से हो सकती है माना जाता है कि सूरज या तो एक दिन सिकुड़ जाएगा और धरती पर ठण्ड से लोग (सूरज कि कमी से ) और प्रकृति सब कुछ नष्ट हो जाएगा वांकी कुछ वैज्ञानिकों मानना है कि सूरज अंपने आकर में बाद रहा है जिससे सूरज एक दिन पृथ्वी को अपने में समाहित कर लेगा और दुनिया नष्ट हो जायेगी तो विज्ञान भी Probability factor पर विश्वास करता है और इस कारण मेरा भी मानना है कि सब कुछ अनिश्चित है जो जब होना है वो तब होकर रहेगा जो कि फिर से परंपरागत विचारधारा से मिलता है जन्हा मरने कि प्रक्रिया को अनिश्चित बताया गया है और इसलिए चाहें जितना भी ज्ञान क्यों न हो जाए अंतिम निष्कर्ष कि कोई जानकारी पहले से नहीं होती। इसीलिए शायद मेरा पसंदीदा गाना भी कुछ यही कहता है " आने वाला पल जाने वाला है हो सके तो इसमें ज़िन्दगी बिता दे पल जो आने वाला है" और इसीसे मिलता जुलता एक गीत है जो फिर से वर्तमान में जीने कि ओर अग्रसित करता है "एक पल के लिए ही सही हमको घड़ियाँ मिली मखमली,आ इस पल में जीले ज़रा, जाने हो क्या खबर देखा है किसने कल"।
मैं झूठ नहीं बोलती और न ही झूठ बोलने वाले लोगों को पसंद करती हूँ, इसकी मुझे प्रेरणा एक बॉलीवुड गाने से मिली "सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है”। ये गीत मैंने तब सुना जब कक्षा ६ में थी और तब से मैंने सोच लिया की अब मैं कभी झूठ नहीं बोलूंगी, कुछ तो है इस गाने में जो मुझे अपनी और अभी भी खींचती मैं अभी अक्सर इस गाने को बजाती हूँ और इससे प्रेरणा लेती हूँ और अगर इसकी बीच की पंक्तियों पर ध्यान दे तो वो इस मरण शील जीवन की और इशारा करती है " तुम्हारे महल चौबारे सभी रह जायेगे प्यारे फिकर किस बात की प्यारे ये सर फिर भी झुकाना है" तो यंहा पर मैं काफी अपने आप को आधुनिक विचारों वाली शख्स समझती हूँ ।यंहा एक और विचार की वजह से मुझे लगता है की मेरे अन्दर आधुनिक ख्याय्लात भी क्यूंकि मेरे लिए जीवन और दुनिया दोनों ही प्रयोजनीय लगती है मुझे लगता है की अभी ऐसी बहुत साड़ी चीजे हैं जिनमे बदलाव लाने की ज़रुरत है तो मेरे लिए अभी दुनिया में करने के लिए बहुत कुछ है जैसे मैं महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा के लिए कुछ कड़े कदम उठाना चाहती हूँ मेरा मानना है है की सिर्फ सिक्षा ही वो माध्यम है जिस से पिछड़े वर्ग के लोग आगे आ सकते हैं मुझे अपनी कम्युनिटी के लिए बहुत कुछ करना है मुझे उन्हें एक नयी पहचान देनी है मुझे वो संसार देखना है जन्हा सब को समान भाव से देखा जाए और सिर्फ जाती, धर्म, रंग और गोत्र को लेकर अपनों की हत्या न की जाए मुझे एक सभ्य समाज देखना है जंहा किसी को किसी से बैर न हो। ये कुछ विचार हैं जिससे पता चलता है की मेरे अन्दर विचारों और सिद्धान्तो का मिश्रण है और मैं उस पारगमन की स्थिति में हूँ जंहा मुझे परम्पराओं, और आधुनिक विचारों वाले समाज से निकल कर पराधुनिक विचारधारा में जाना है।
मैं ऑडियो विजुअल मीडिया में विशवास रखती हूँ, मैं अधिकतर टेक्स्ट को पड़कर बोर हो जाती हूँ और यही कारण है की अपनी बात लोगो तक पहुचाने के लिए मैंने पत्रकारिता का ऑडियो विजुअल माध्यम चुना है,।
जब भी कभी मेरा टेस्ट या असाइन्मेंट में कम नम्बर आते हैं तो हम अपने आप को खुश करने के अपने आप को पार्टी देते हैं, मैं जब भी दुखी होती हूँ या ऐसी ही बिना किसी बात के अपने आप को खुश करने के लिए मैं अपने आप को ट्रीट करती हूँ, अगर मैंने किसी दिन बहुत मेहनत कर ली है तो मुझे ऐसा लगता की अब मैं एक चॉकलेट तो खा ही सकती हूँ।
इसीलिए शायद मुझे ब्रेक अप पार्टी का कांसेप्ट पसंद है, मुझे अपने आप को खुश रखने का बहाना चाहिए होता है इस लिए मुझे love aaj kal आज कल काफी पसंद है क्यूंकि उसमे व्यक्ति विशेष पर जोर दिया गया न की किसी ढांचे पर।मैं दूसरो से ज्यादा अपने अनुभवों से सीखना पसंद करती हूँ, मुझे दूसरो के अवलोकन में ज्यादा रूचि नहीं है, बल्कि मेरा मानना है की एक बार गिर कर देखो तभी चलना आएगा|
तो कुल मिलकर मेरी विचारों में तीनो तरीके के विचारों का मिलन है, लेकिन अगर अनुपात के रूप में देखा जाए तो मैं अपने आप को पराधुनिक और परम्परागत विचारों वाला इंसान ही बताउंगी क्यूंकि आधुनिक विचारों का समावेश मेरे विचारों और व्यक्तित्व में कम दिखता है|